तिहाड़ में बैडमिंटन और योग सत्रों के माध्यम से रची गई इंदिरा सरकार के खिलाफ आंदोलन की बुनियाद
वैभव मनीषा
- 25 Jun 2025, 01:39 PM
- Updated: 01:39 PM
(सौम्या शुक्ला)
नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) आपातकाल के दौरान जेल में बंद नानाजी देशमुख, विजया राजे सिंधिया और चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं के बीच योग, बैडमिंटन और फुटबॉल के सत्रों के बहाने हुई कई बातचीत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनीतिक विद्रोह की नींव रखी थी। तिहाड़ जेल के सहायक अधीक्षक रहे एच सी वर्मा उन दिनों की याद करते हुए बताते हैं।
वर्मा (76) ने आज से 50 साल पहले लगाए गए आपातकाल को याद करते हुए ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमें बताया गया था कि कुछ खतरनाक लोगों को जेल में लाया जा रहा है, लेकिन कोई नाम या विवरण नहीं दिया गया। जब इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनावी कदाचार मामले में जीतने वाले राज नारायण को मीसा के तहत हिरासत वारंट के साथ लाया गया, तब हमें एहसास हुआ कि राजनीतिक लोगों को जेल में डाला जा रहा है।’’
अगले 48 घंटे तक अनेक ऐसे लोगों को हिरासत में लिए जाने का सिलसिला जारी रहा।
पूर्व जेल अधिकारी ने बताया, ‘‘एक के बाद एक लाला हंसराज गुप्ता, नानाजी देशमुख, प्रकाश सिंह बादल, अरुण जेटली, जॉर्ज फर्नांडिस, चौधरी चरण सिंह, महारानी विजया राजे सिंधिया और महारानी गायत्री देवी जैसे नेताओं को जेल में लाया गया।’’
कैदियों की राजनीतिक हैसियत अधिकारियों के लिए एक अनूठी चुनौती थी।
वर्मा ने कहा, ‘‘ये कोई साधारण अपराधी नहीं थे। ये राष्ट्रीय हस्तियां थीं, जिनमें से कई ने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें इस तरह जेल में डाला जाएगा। शुरू में, कई लोग नाराज, निराश और भ्रमित थे। हम उनके लिए उस समय की व्यवस्था का चेहरा बन गए और उनके सवालों और पीड़ा का खामियाजा हमें भुगतना पड़ा।’’
उस समय मात्र 26 वर्ष के रहे वर्मा अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह राजनीतिक दलों के नेता, जो कभी एक-दूसरे के विरोधी थे, जेल में एक साथ आए, तिहाड़ में उनकी चर्चा ने एक संयुक्त राजनीतिक मोर्चे के गठन का मार्ग प्रशस्त किया, जिसने अंततः 1977 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटा दिया।
वर्मा ने कहा, ‘‘नानाजी ने हमसे कहा कि वह विजया राजे सिंधिया से बात करना चाहते हैं, लेकिन हमने उनसे कहा कि वह उनसे बात नहीं कर सकते, क्योंकि वह महिला जेल में बंद हैं। फिर सिंधिया ने अनुरोध किया कि वह नानाजी से योग सीखना चाहती हैं। यह सोचकर कि वे अपराधी नहीं हैं, हमने इसकी अनुमति दे दी और उन्हें उनके पास ले गए।’’
बाद में जेल अधिकारियों को पता चला कि ये नेता एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने पर चर्चा कर रहे थे। वर्मा ने कहा, ‘‘उन चर्चाओं से ही जनता पार्टी के गठन की शुरुआत हुई।’’
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, नेता जेल के माहौल में सामंजस्य बैठाने लगे। जेल अधिकारियों ने उन्हें बैडमिंटन, लूडो, फुटबॉल और अन्य मनोरंजन की सुविधा प्रदान की।
वर्मा ने बताया, ‘‘अरुण जेटली एक अच्छे बैडमिंटन खिलाड़ी थे। मैं उनके साथ खेलता था। चौधरी चरण सिंह स्कोर नोट करते थे।’’
वर्मा ने कहा कि जेल कर्मचारियों ने नियमों के अनुसार उन्हें यथासंभव सम्मान दिया। उन्होंने कहा, ‘‘वे निर्दोष लोग थे जिन्हें बिना किसी मुकदमे के हिरासत में लिया गया था। हमने उनके रहने के माहौल को साफ-सुथरा बनाने, उचित भोजन मुहैया कराने आदि की कोशिश की।’’
प्रोटोकॉल के अनुसार जेल कर्मचारियों को राजनीति पर चर्चा करने या खुले तौर पर इन नेताओं से सहानुभूति जताने से मना किया गया था, लेकिन वर्मा ने स्वीकार किया कि आंतरिक रूप से उनकी गहरी सहानुभूति थी।
उन्होंने कहा, ‘‘हम नियमों से बंधे थे, लेकिन दिल से हम जानते थे कि उनमें से कई को वहां नहीं होना चाहिए था।’’
वर्मा, जो बाद में जेल अधीक्षक बन गए, ने अपने स्कूल शिक्षक रहे मास्टर सोमराज को लेकर एक घटना याद की और कहा, ‘‘जब मैंने उन्हें देखा तो मैंने सहज रूप से उनके पैर छुए। उन्होंने मुझे रोका और आगाह किया कि ‘जेल में ऐसा मत करो। यह तुम्हारे खिलाफ जा सकता है’।’’
उन्होंने कहा, ‘‘महारानी गायत्री देवी अपना खुद का बैडमिंटन कोर्ट चाहती थीं, अपनी दिनचर्या पर जोर देती थीं। दूसरी ओर, विजया राजे सिंधिया संत जैसी थीं। वह प्रार्थना करती थीं, अन्य महिला कैदियों को शिक्षा देती थीं, उनका मार्गदर्शन करती थीं।’’
वर्मा बताते हैं कि जब नेताओं को रिहा किया गया तो कर्मचारियों और कैदियों दोनों में राहत की भावना थी। उन्होंने कहा, ‘‘हम खुश थे कि वे अपने परिवारों के पास वापस जा रहे थे। उनमें से कई बाद में शीर्ष पदों पर पहुंचे। मदन लाल खुराना जैसे कुछ लोगों से मेरी मुलाकात बाद में भी हुई जब वह दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।’’
भाषा वैभव