दिल्ली में चार दिन में 250 से अधिक पक्षी चीनी मांझे से घायल
खारी अविनाश
- 05 Aug 2025, 07:58 PM
- Updated: 07:58 PM
(वर्षा सागी)
नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस से पहले पतंगबाजी परवान पर होती है लेकिन पक्षियों के घायल होने की घटनाओं में वद्धि को लेकर पशु चिकित्सकों और वन्यजीव बचाव समूहों ने आगाह किया है। इनका कहना है कि अधिकतर पक्षी प्रतिबंधित ‘चीनी मांझे’ के कारण घायल हो रहे हैं।
दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में चौबीसों घंटे पक्षी एम्बुलेंस सेवा संचालित करने वाले गैर-सरकारी संगठन ‘विद्या सागर जीव दया परिवार’ के अनुसार एक से चार अगस्त के बीच 250 से ज्यादा पक्षी घायल हुए जिन्हें उपचार मुहैया कराकर बचाया गया है।
इसके अनुसार इन पक्षियों में से अधिकांश के पंख कटे हुए थे, शरीर पर गहरे जख्म थे, कई की तो आंखों की रोशनी तक खत्म हो गयी और इन सभी की वजह प्रतिबंधित चीनी मांझा है।
संगठन ने कहा कि इन चार दिन में उसे मदद के लिए करीब 300 कॉल प्राप्त हुईं।
चीनी मांझा, सामान्य तौर पर सामान्य मांझे से बहुत अलग और खतरनाक होता है। यह नायलॉन या प्लास्टिक का धागा होता है जिस पर कांच का बारीक पाउडर, धातु या अन्य पदार्थों की परत चढ़ाई जाती है ताकि मांझे को धारदार बनाया जा सके। आधिकारिक तौर पर प्रतिबंध के बावजूद चीनी मांझा राजधानी के बाजारों में बिक रहा है।
भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 223 के तहत चीनी मांझे का इस्तेमाल एक दंडनीय अपराध है जिसके लिए 5,000 रुपये तक का जुर्माना या एक साल तक की कैद हो सकती है।
संगठन के निदेशक अभिषेक जैन ने कहा, ‘‘पिछले दिनों हमें रोजाना औसतन 75 से 100 कॉल प्राप्त हुए और हमने हर दिन लगभग 50 पक्षियों को बचाया। इनमें से भी कई इतने गंभीर रूप से घायल होते हैं कि हर 50 में से कम से कम पांच पक्षी जान गंवा देते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ पक्षियों के पंख मांझे से पूरी तरह कट जाते हैं, तो कुछ घंटों तक बिना खाना-पानी तड़पते रह जाते हैं। इस दौरान उन्हें इतने गहरे अंदरूनी जख्म हो जाते हैं कि उन्हें बचाया नहीं जा सकता।’’
संगठन के अध्यक्ष अमित जैन ने बताया कि चीनी मांझे सबसे ज्यादा कबूतरों को जख्म दे रहे है, इसके अलावा चील, तोते और कभी-कभी मोर भी इसकी चपेट में आ जाते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘कबूतरों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी मजबूत होती है; वे ज्यादातर किसी भी परिस्थिति में जीवित रहते हैं लेकिन अन्य पक्षियों के लिए स्थिति थोड़ी अलग होती है।’’
अमित जैन ने कहा, ‘‘लेकिन इस बार ऐसे मामले देखे जा रहे हैं जिसमें वे (कबूतर) पंख या अंग कट जाने, या लंबे समय तक दर्द झेलने और भूख के कारण हिलने-डुलने की क्षमता खो देते हैं।’’
गैर-सरकारी संगठन का दावा है कि उसने दिल्ली-एनसीआर में एक जनवरी से 10,000 से अधिक पक्षियों को बचाया है। इसका कहना है कि अन्य दिनों में 30 से 40 कॉल प्राप्त होती हैं और अधिकांश मामलों में पक्षी के लकवाग्रस्त होने, भूख या किसी तार या पेड़ पर फंसे होने के बाद मदद मांगी जाती है।
जैन ने कहा कि मदद के लिए कॉल की संख्या आमतौर पर अगस्त के पहले सप्ताह से बढ़ने लगती है, स्वतंत्रता दिवस के आसपास के सप्ताह में इनकी संख्या चरम पर होती है और महीने के अंत तक धीरे-धीरे कम हो जाती है।
पशु चिकित्सक डॉ. रामेश्वर ने कहा, ‘‘इन दिनों मुझे रोजाना करीब 50 से 80 पक्षियों के घायल होने की सूचना मिलीं। इनमें से आधे से अधिक कबूतर, लगभग 15 से 20 चील और गौरैया, मोर आदि शामिल हैं।’’
उन्होंने बताया कि 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में पक्षियों के घायल होने का कारण ‘चीनी मांझा’ है।
पशु कल्याण के लिए काम करने वाले एक अन्य गैर-सरकारी संगठन से जुड़े डॉ. राकेश मिश्रा ने कहा कि अगस्त पक्षियों के लिए खतरा लेकर आता है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह कई पक्षियों का प्रजनन मौसम है। भारी बारिश और तेज हवाओं के कारण घोंसले गिर जाते हैं और अपनी पहली उड़ान भरने की कोशिश करने वाले नए पक्षी अक्सर मांझे में फंस जाते हैं। यह मांझा पंखों और नसों को काट देता है जो स्थायी क्षति या मौत का कारण बन जाता है।’’
इस बीच दिल्ली पुलिस ने चार अगस्त को प्रतिबंधित मांझे की बिक्री में लिप्त दो लोगों को गिरफ्तार किया और उनके कब्जे से 660 रोल चीनी मांझा बरामद किया।
दिल्ली में चीनी मांझे का भंडार जब्त करने और अवैध आपूर्तिकर्ताओं का पता लगाने के लिए समय-समय पर छापेमारी भी की जाती है।
भाषा
खारी