राजस्थान में सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए खेजड़ी की कथित अवैध कटाई के खिलाफ प्रदर्शन
जोहेब
- 05 Aug 2025, 09:48 PM
- Updated: 09:48 PM
जोधपुर/जयपुर, पांच अगस्त (भाषा) राजस्थान का राजकीय वृक्ष और थार रेगिस्तान के पारिस्थितिक तंत्र का अहम हिस्सा माना जाने वाला खेजड़ी का पेड़ राज्य में लगातार शुरू हो रहीं सौर ऊर्जा परियोजनाओं के कारण खतरे में है।
राज्य में कई जगह खेजड़ी को कथित तौर पर अवैध रूप से काटे जाने के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं और कार्यकर्ताओं ने तत्काल पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय किए जाने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान को नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बनाने की कोशिशें की जा रही हैं और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, फलोदी और आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर जमीन सौर संयंत्रों के लिए पट्टे पर दी जा रही है।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं व स्थानीय लोगों का आरोप है कि 'हरित ऊर्जा' का बुनियादी ढांचा खड़ा करने की इस होड़ में बड़ी संख्या में खेजड़ी के पेड़ उखाड़े जा रहे हैं या उन्हें रेत में दबा दिया जा रहा है।
बिश्नोई टाइगर फोर्स के अध्यक्ष रामपाल भवाद ने आरोप लगाया कि सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने वाली कंपनियां खेजड़ी के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर रही हैं।
उन्होंने कहा, “ये कंपनियां पेड़ों को उखाड़कर या काटकर जमीन साफ करती हैं, कभी-कभी उन्हें जमीन में दबा देती हैं या आग लगा देती हैं। यह खुलेआम हो रहा है। अक्सर अधिकारियों की जानकारी में और उनकी निष्क्रियता से ऐसा होता है।”
खेजड़ी की इस कथित अंधाधुंध व अवैध कटाई के खिलाफ बाड़मेर के शिव उपखंड में पिछले चार महीने में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
शिव विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी प्रदर्शन में शामिल हुए।
उन्होंने धरना स्थल पर रात बिताई और इस मामले को उच्चतम स्तर तक ले जाने का संकल्प लिया।
सोमवार को भाटी ने परियोजना स्थलों से खेजड़ी के दबे हुए तने खोदकर नुकसान का खुलासा किया।
उन्होंने दावा किया, "कंपनियों ने खेजड़ी के सूखे पेड़ों को पेट्रोल से जला दिया है।"
भाटी ने स्थानीय अधिकारियों पर जमकर निशाना साधा और पुलिस पर अवैध गतिविधियों के सबूत मिलने के बावजूद कार्रवाई न करने का आरोप लगाया।
उन्होंने पुलिस से सवाल किया, "जब रात भर आग जलाई जा रही थी, तब आपके गश्ती दल कहां थे?"
जेसीबी मशीनों से पेड़ों को उखाड़कर ट्रैक्टर ट्राली में ले जाने के वीडियो सोशल मीडिया पर आने से लोगों की नाराजगी बढ़ गई। परियोजना स्थलों के पास राख के ढेर की तस्वीरें भी सामने आई हैं।
शिव के उपखंड अधिकारी यक्ष चौधरी ने मामले की गंभीरता को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, "विधायक भाटी और ग्रामीण पेड़ों की अवैध कटाई का विरोध कर रहे हैं। हमने जांच के आदेश दे दिए हैं और कार्रवाई की जाएगी।"
हालांकि ग्रामीण ओरण भूमि की सुरक्षा, उचित मुआवजा दिलाए जाने तथा पेड़ों की अवैध कटाई रोकने की अपनी मांग पर अड़े रहे।
एक किसान ने कहा, "हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह हमारे जंगल, संस्कृति की कीमत पर नहीं होना चाहिए।"
राज्य ने 2030 तक 90 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है जो भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
पिछले कुछ वर्षों में राज्य में सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए विभिन्न कंपनियों को 1.50 लाख बीघा से अधिक भूमि आवंटित की गई है।
महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय बीकानेर में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख अनिल छंगाणी ने दावा किया कि पश्चिमी क्षेत्र में सौर संयंत्र लगा जाने के कारण हाल के वर्षों में अनुमानित 30 लाख पेड़ कट गए हैं, जिनमेंअधिकांश पेड़ खेजड़ी के थे।
उन्होंने कहा, "खेजड़ी सिर्फ एक पेड़ नहीं है; यह रेगिस्तान की जीवन रेखा है। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, जैव विविधता को बढ़ावा देता है, चारा और भोजन भी प्रदान करता है। इस पैमाने पर इसका विनाश पारिस्थितिक आत्महत्या है।"
छंगाणी ने दावा किया कि 2030 तक सौर ऊर्जा उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने के लिए 1.92 लाख एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी और इसके लिए अगले पांच साल में लगभग 38.54 लाख पेड़ों की बलि दी जाएगी।
कार्यकर्ता विशेक बिश्नोई ने कहा कि विकास के साथ-साथ जनता का गुस्सा भी बढ़ रहा है।
बिश्नोई ने कहा, "ओरण (पवित्र वन भूमि) और चरागाह के लिए निर्धारित भूमि भी निजी सौर ऊर्जा कंपनियों को आवंटित की जा रही है, जिसके कारण पशुओं के लिए चारे की कमी हो गई है और स्थानीय लोगों के लिए कई कठिनाइयां पैदा हो रही हैं।"
उल्लेखनीय है कि राजस्थान के लगभग दो-तिहाई क्षेत्र में खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) के पेड़ हैं और इसका गहरा आर्थिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसकी फलियों को सांगरी कहा जाता है और यह राजस्थान के प्रसिद्ध व्यंजन 'पंचकूट' की सामग्री में से एक है। खेजड़ी की हरी फलियों को संग्रहित किया जाता है और साल भर इस्तेमाल किया जाता है।
कुछ दस्तावेजों के अनुसार इसकी छाल का इस्तेमाल 1869 के अकाल के दौरान आटे के रूप में किया गया था। इसकी फलियां पशु खाते हैं, इसकी पत्तियां चारा हैं और इसकी जड़ें मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं। इस वृक्ष का विशेषकर बिश्नोई समुदाय में बहुत पवित्र माना जाता है।
भाषा पृथ्वी