जटिल वित्तीय अपराधों में आरोपियों को पकड़ने के लिए विशेष अदालतें और वैज्ञानिक जांच जरूरी: न्यायालय
धीरज संतोष
- 05 Aug 2025, 10:51 PM
- Updated: 10:51 PM
नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को टिप्पणी की कि जटिल आर्थिक और कानूनी मुद्दों पर निर्णय देने के लिए ‘‘विशेष अदालतों का समय आ गया है।’’
उसने वित्त और अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा वैज्ञानिक जांच की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ छत्तीसगढ़ के ‘कोयला लेवी’ घोटाले में आरोपी व्यवसायी सूर्यकांत तिवारी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि विशेष अदालतें बनाई जाएं जो जटिल आर्थिक और कानूनी मुद्दों पर फैसला सुना सकें। न्यायाधीशों को नियुक्त किये जाने के बाद उन्हें ऐसे जटिल वित्तीय अपराधों से निपटने और मुकदमे को शीघ्रता से निपटाने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए और उन्हें शीघ्रता से दोषी ठहराया जाना चाहिए। इसी प्रकार, यदि कोई निर्दोष है, तो उसे शीघ्रता से रिहा किया जाना चाहिए।’’
पीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी से कहा कि न्यायाधीश शून्य में न्याय नहीं करते तथा उन्हें ‘‘पूर्ण न्याय’’ के लिए सक्षम अभियोजकों और जांचकर्ताओं की आवश्यकता होती है।
न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘क्या आपके राज्य में वित्तीय अपराधों के लिए एक समर्पित जांच शाखा है? आपके पास एक आर्थिक अपराध शाखा तो है, लेकिन आपके पास फोरेंसिक एकाउंटेंट नहीं हो सकते हैं, जो लेन-देन के जाल का विश्लेषण कर सकें। आम तौर पर, वित्तीय अपराधों का निपटारा वर्तमान में स्वीकारोक्ति के आधार पर किया जाता है और स्वीकारोक्ति के लिए आपको किसी को जेल में डालना पड़ता है और जानकारी निकालने और मामले को साबित करने की कोशिश करनी पड़ती है।’’
पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या यह 19वीं सदी की पुरानी जांच है? अपनी जांच की स्थिति देखिए। कल, आपके पास ‘डार्क वेब’ पर अपराध होंगे, जहां धन का हस्तांतरण क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से होगा। उस क्षेत्र में आपकी क्षमता निर्माण कहां है? आज, शुक्र मनाइए कि कथित रिश्वत लेने वालों ने मुद्रा में पैसा लिया।’’
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि आजकल अधिकांश राज्यों के पास जघन्य अपराधों में त्वरित सुनवाई के लिए विशेष, नामित अदालतें गठित करने की वित्तीय क्षमता नहीं है और हर महीने की 31 तारीख तक वे वेतन का भुगतान करने के लिए धन जुटाने का प्रयास करते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘उनके (राज्यों के) पास वेतन देने के लिए धन नहीं है। इसलिए विशेष कानूनों के लिए समर्पित अदालतें उनके लिए सबसे कम प्राथमिकता वाली हैं। बेशक, भारत संघ उनकी मदद कर सकता है और समर्पित अदालतें स्थापित कर सकता है और इसलिए हमने इस मुद्दे पर कुछ मामलों में केंद्र से जवाब मांगा है।’’
किसी व्यक्ति को सलाखों के पीछे डालने के सवाल पर पीठ ने कहा कि आरोपियों को दिखावे के लिए जेल में डाला जाता है।
न्यायालय ने कहा कि किसी भी राज्य में गवाह संरक्षण कार्यक्रम नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘गवाहों की सुरक्षा का एकमात्र उपाय अभियुक्त को जेल में रखना है। आज की तकनीकी जानकारी के अनुसार, भौतिक और स्थानिक दूरी का कोई खास महत्व नहीं है। शायद ही कोई सरकारी अभियोजन एजेंसी हो जो गवाहों में सुरक्षा और विश्वास का माहौल सुनिश्चित करने के लिए वास्तव में अपना धन, समय और ऊर्जा व्यय करती हो। तो फिर किसी विचाराधीन कैदी को जेल में रखकर अभियोजन का माहौल बनाने का क्या फायदा?’’
शीर्ष अदालत ने हाल ही में आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र को नक्सल मामलों सहित अपराधों की सुनवाई के लिए समर्पित एनआईए और यूएपीए अदालतें स्थापित करने को कहा है।
भाषा धीरज