न्यायालय ने पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना बरकरार रखी,बड़ी परियोजनाओं के लिए छूट का प्रावधान रद्द
अमित संतोष
- 05 Aug 2025, 11:03 PM
- Updated: 11:03 PM
नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की 29 जनवरी की अधिसूचना को मंगलवार को बरकरार रखा, लेकिन कुछ बड़ी इमारत एवं निर्माण परियोजनाओं को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी से छूट देने वाले विवादास्पद उपबंध को खारिज कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि 20,000 वर्ग मीटर से अधिक निर्मित क्षेत्र वाली परियोजनाओं को, चाहे वे औद्योगिक हों, शैक्षणिक हों या अन्य, पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) 2006 व्यवस्था से छूट नहीं दी जा सकती।
उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह अधिसूचना केरल पर भी लागू होगी।
प्रधान न्यायाधीश ने आदेश सुनाते हुए कहा, ‘‘यह लगातार माना गया है कि प्राकृतिक संसाधन को अगली पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए। साथ ही, अदालतों ने हमेशा विकास गतिविधियों को भी ध्यान में रखा है और देश इसके बिना प्रगति नहीं कर सकता।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने हमेशा सतत विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने कहा, "अदालत ने यह सुनिश्चित करते हुए कि विकास की अनुमति दी जाए, यह भी आवश्यक सावधानी बरती है कि पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो और यहां तक कि ऐसी विकास गतिविधियों के लिए भरपायी करने का भी आदेश दिया है।’’
आदेश में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रालय के लिए पूरे देश की परियोजनाओं पर विचार करना संभव नहीं होगा, इसलिए इस मुद्दे पर राज्य-दर-राज्य आधार पर विचार किया जा सकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि 20,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में कोई भी निर्माण गतिविधि की जाती है, तो उसका पर्यावरणीय प्रभाव पड़ेगा, भले ही वह औद्योगिक या शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए हो। ऐसे में समान प्रकार के संस्थानों के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता।’’
पीठ ने यह भी कहा कि इस संबंध में शिक्षा क्षेत्र को कोई छूट नहीं दी जा सकती।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "आजकल शिक्षा भी एक फलता-फूलता उद्योग बन गया है, इसलिए ऐसी परियोजनाओं को 2006 की अधिसूचना से छूट देने का कोई कारण नहीं है।"
पीठ ने 29 जनवरी की अधिसूचना के उपबंध 8 को छोड़कर अधिसूचना को बरकरार रखा, जो 1,50,000 वर्ग मीटर तक के निर्मित क्षेत्र वाले औद्योगिक शेड, स्कूल, कॉलेज और छात्रावासों को छूट प्रदान करता है।
पीठ ने कहा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए देश भर में हर परियोजना का मूल्यांकन करना अव्यावहारिक है। उसने कहा कि केंद्रीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (सीईए) राज्यवार मूल्यांकन कर सकती है।
शीर्ष अदालत ने 25 फरवरी को मुंबई के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) वनशक्ति द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर अधिसूचना पर रोक लगा दी थी। याचिका में दलील दी गई थी कि इस छूट से पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) के सुरक्षा उपाय कमजोर पड़ते हैं और इससे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों को खतरा है।
एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि 2014, 2016 और 2018 में इसी तरह के प्रयासों को केरल उच्च न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण और दिल्ली उच्च न्यायालय सहित कई अदालतों ने खारिज कर दिया था या रोक लगा दी थी।
गत 29 जनवरी के संशोधन से पहले, पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) 2006 में 20,000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल वाली सभी निर्माण परियोजनाओं के लिए पर्यावरण संरक्षण (ईसी) की आवश्यकता थी। उक्त अधिसूचना ने कुछ श्रेणियों के लिए सीमा को बढ़ाकर 1,50,000 वर्ग मीटर कर दिया गया और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील तथा प्रदूषित क्षेत्रों में लागू "सामान्य शर्तों" को भी हटा दिया गया।
इसके बाद 30 जनवरी को जारी अनुवर्ती कार्यालय ज्ञापन में छूट का दायरा बढ़ाकर इसमें निजी विश्वविद्यालयों, गोदामों और मशीनरी या कच्चे माल वाले औद्योगिक शेड को भी शामिल कर दिया गया।
भाषा अमित