‘जिस्म’ से लेकर भू-राजनीति तक: जॉन अब्राहम सिनेमाई विरासत बनाने में जुटे
नेत्रपाल दिलीप
- 08 Aug 2025, 07:54 PM
- Updated: 07:54 PM
(बेदिका)
नयी दिल्ली, आठ अगस्त (भाषा) बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम का कहना है कि जब उन्होंने सिनेमा जगत में कदम रखा था, तो ‘जिस्म’ और ‘दोस्ताना’ जैसी फिल्मों के जरिए उनका पूरा ध्यान ‘‘शरीर’’ पर था, लेकिन दो दशक बाद भू-राजनीतिक मुद्दों में रुचि के चलते उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें एक बिलकुल अलग दुनिया मिल गई है।
अभिनेता-फिल्म निर्माता खबरों से रूबरू रहने में घंटों बिताते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उनकी ‘फिल्मोग्राफी’ में नाटकीय बदलाव आया है। इसलिए अब इस सूची में ऐसी फिल्म शामिल हैं, जो व्यावसायिक मुद्दों और उनके भारत पर पड़ने वाले प्रभावों पर आधारित कहानियों के साथ-साथ व्यावसायिकता से भी मेल खाती हैं, चाहे वह ‘मद्रास कैफे’ हो, ‘परमाणु’, ‘द डिप्लोमैट’ हो या उनकी आने वाली फिल्म ‘तेहरान’।
अब्राहम ने पीटीआई-भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘अब यह महत्वपूर्ण है कि मैं जिस तरह की फिल्म कर रहा हूं, उनके इर्द-गिर्द एक विरासत का निर्माण करूं और उनके लिए जाना जाऊं... पहले, मुझे समझ नहीं आता था कि दर्शक मेरे बारे में क्या सोचते हैं, क्योंकि हम ज्यादातर समय अलग-थलग रहते हैं। लेकिन जब मैं यात्रा करता हूं और लोगों से मिलता हूं, तो वे कहते हैं, ‘ओह, जॉन हमें ‘द डिप्लोमैट’ पसंद है। ओह, हमें ‘मद्रास कैफे’ पसंद है। तब आपको एहसास होता है कि आपने धीरे-धीरे अपने लिए एक कहानी बनानी शुरू कर दी है।’’
बातचीत में डोनाल्ड ट्रंप, टैरिफ, फलस्तीन, इजराइल और रूस-यूक्रेन के बारे में चर्चा हुई।
वह चाहते हैं कि उनके दर्शक उन्हें समझदार सिनेमा से जोड़ें, उसी सिनेमा से जिसने उन्हें फिल्मों में आने के लिए प्रेरित किया। उन्हें वह पल याद है, जब उन्होंने स्टीवन स्पीलबर्ग की 1993 की होलोकॉस्ट ड्रामा ‘शिंडलर्स लिस्ट’ देखी थी।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं, मैं कई दिन तक प्रभावित रहा... चूंकि इसका मुझ पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा, इसलिए मैंने निर्णय लिया कि जब मैं निर्माता बनूंगा या फिल्मों में काम करूंगा तो मैं इसी प्रकार की फिल्म करना चाहूंगा।’’
अब्राहम ने अपनी 2003 की पहली फिल्म का जिक्र करते हुए मजाकिया लहजे में कहा कि हालांकि जब उन्होंने ‘शोबिज’ में प्रवेश किया, तो सब कुछ ‘जिस्म’ के बारे में था।
उन्होंने कहा, ‘‘(उस समय) सबकुछ शरीर के बारे में था। और मैं इससे पीछे नहीं हटा। एक विशाल दर्शक वर्ग है, जो इसकी सराहना करता है। और मुझे यह पसंद है। लेकिन मेरे लिए अपनी बात कहना भी बहुत जरूरी था। इसलिए ‘काबुल एक्सप्रेस’, ‘न्यूयॉर्क’, ‘मद्रास कैफे’ और ‘द डिप्लोमैट’ जैसी प्रासंगिक फिल्म आने लगीं। लेकिन एक बार जब मैं निर्माता बन गया, तो मैं पूरी तरह से इसमें जुट गया।’’
अब्राहम के प्रोडक्शन हाउस जेए एंटरटेनमेंट ने 2012 में ‘विक्की डोनर’ से शुरुआत की, जिसके लिए इसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इसके बाद ‘मद्रास कैफे’, ‘बटला हाउस’ और ‘अटैक’ जैसी कई फिल्में आईं, जिनमें से कई में उन्होंने अभिनय भी किया।
अपनी फिल्मों के जरिए, वह अपने दर्शकों को यह दिखाना चाहते हैं कि ‘‘भारत बाकी दुनिया के साथ किस तरह जुड़ा हुआ है। और यह बात उनके बचपन से ही शुरू होती है, जब उनके पिता उन्हें हर सुबह अखबारों के संपादकीय पढ़ने को कहते थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आज भी, मैं गैर शूटिंग वाले दिन सुबह सात बजे अपने दफ़्तर पहुँच जाता हूँ और पहले दो घंटों में मैं सिर्फ़ दुनिया में क्या हो रहा है, इस पर नज़र रखता हूँ। अगर आप मुझसे ‘तेहरान’ के बारे में पूछें और कहें कि आपने यह फ़िल्म क्यों की, तो मैं आपको ईरान-इज़राइल संघर्ष के बारे में बता सकता हूँ।’’
मैडॉक फिल्म्स द्वारा निर्मित ‘तेहरान’ 14 अगस्त से ज़ी5 पर प्रसारित होगी। यह एक सच्ची घटना का काल्पनिक वृत्तांत है, जो इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ते वैश्विक तनाव के बीच सामने आता है। यह 2012 में नयी दिल्ली स्थित इज़राइली दूतावास के पास हुए बम विस्फोट से प्रेरित है।
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नेत्रपाल