सिंधु-जल संधि निलंबित होने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो प्रमुख परियोजनाओं पर केंद्र से उम्मीद
खारी नरेश
- 21 Jul 2025, 03:35 PM
- Updated: 03:35 PM
(सुमीर कौल)
श्रीनगर, 21 जुलाई (भाषा) सिंधु-जल संधि के मुखर आलोचक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उम्मीद जताई है कि केंद्र सरकार कश्मीर में तुलबुल नौवहन परियोजना को पूरा करने और जम्मू में जल संकट को दूर करने के लिए चिनाब नदी के पानी के भंडारण की अनुमति देगी।
पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले के बाद केंद्र सरकार ने आतंकवादी समूहों का समर्थन करने और भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ कई कदम उठाए थे जिसमें 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करना भी शामिल था।
पहलगाम में हुए हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी जिनमें से अधिकांश पर्यटक थे।
इस संधि के अनुसार भारत की पूर्वी नदियों-सतलुज, व्यास और रावी से सालाना लगभग 33 मिलियन एकड़ फुट (एमएएफ) पानी तक निर्बाध पहुंच है जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब से सर्वाधिक लगभग 135 एमएएफ पानी मिलता है।
हाल में ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में मुख्यमंत्री अब्दुल्ला ने कहा कि सिंधु-जल संधि को निलंबित करने के संपूर्ण लाभ मिलने में समय लगेगा और ऐसे में उनकी सरकार मध्यावधि परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है जिन्हें तुरंत शुरू किया जा सकता है।
अब्दुल्ला जब विदेश राज्य मंत्री थे तभी से इस संधि का पुरजोर विरोध करते रहे हैं। उनका कहना है कि 1960 का यह समझौता जम्मू-कश्मीर के लोगों पर थोपा गया ‘‘सर्वाधिक अनुचित दस्तावेज’’ है।
उन्होंने सिंधु-जल संधि को एक ऐसा दस्तावेज बताया जो ‘‘आवश्यक रूप से जम्मू-कश्मीर को पानी संग्रहित करने के अधिकार से वंचित करता है और इसने सभी बिजली परियोजनाओं को ‘‘नदी प्रवाह आधारित परियोजनाएं’’ बना दिया।
अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘हम अचानक बिजली परियोजनाएं बनाकर जल भंडारण शुरू नहीं कर सकते।’’ उन्होंने कहा कि ऐसे कामों में समय लगता है।
उन्होंने कहा, ‘‘सिंधु जल संधि का (निलंबित होने का) लाभ मिलने में हमें समय लगेगा।’’
हालांकि, उन्होंने उन दो खास परियोजनाओं पर जोर दिया जिन्हें उनके अनुसार ‘‘तुरंत शुरू किया जाना चाहिए’’ जिनमें सोपोर में तुलबुल नौवहन बैराज को दोबारा शुरू करना शामिल है।
इस परियोजना के बारे में उन्होंने बताया कि इससे न केवल झेलम नदी का उपयोग नौवहन के लिए किया जा सकेगा, बल्कि यह हमारी सभी विद्युत परियोजनाओं, खासकर लोअर झेलम और उरी जलविद्युत परियोजनाओं को सर्दियों में अधिक बिजली उत्पादन में भी सक्षम बनाएगी।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने केंद्र को सुझाव दिया है कि बांदीपोरा और सोपोर की सीमा पर स्थित तुलबुल नौवहन परियोजना में ‘ड्रॉप गेट’ बनाए जाएं ताकि झेलम नदी के जल स्तर का उचित प्रबंधन किया जा सके।
उरी में 2016 में हुए आतंकी हमले के बाद से भारत ने इस परियोजना पर काम तेज कर दिया है। पाकिस्तान की आपत्तियों के कारण इस पहल को 1987 में शुरुआत में स्थगित कर दिया गया था।
इस मुद्दे को सुलझाने के भारत के प्रयासों के बावजूद, पाकिस्तान ने 2017 से 2022 के बीच हुई स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में भाग लेने से इनकार कर दिया था।
दूसरी परियोजना अखनूर की ‘वॉटर लिफ्टिंग’ योजना है, जिसका उद्देश्य जल संकट से जूझ रहे जम्मू शहर को एक स्थायी जल स्रोत प्रदान करना है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि चिनाब एक आदर्श जल स्रोत है और यह परियोजना जम्मू को अगले दो से तीन दशकों तक जलापूर्ति प्रदान कर सकती है।
यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्र को औपचारिक प्रस्ताव सौंप दिया गया है तो मुख्यमंत्री ने पुष्टि की कि ‘‘हमारी बातचीत पहले ही हो चुकी है’’ और कहा कि प्रधानमंत्री के एक वरिष्ठ सलाहकार ने हाल में सिंधु-जल संधि से जुड़ी इन विशिष्ट परियोजनाओं की समीक्षा के लिए क्षेत्र का दौरा किया था।
अब्दुल्ला ने कहा कि सलाहकार का दौरा इस बात का संकेत है कि केंद्र इन परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अपनी मंजूरी दे सकता है।
दूसरा अल्पकालिक सुझाव जम्मू और कश्मीर की छह महीने की शीतकालीन राजधानी जम्मू में लोगों के लिए बेहतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए चिनाब नदी से पानी उठाने के बारे में था।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने चिनाब जल आपूर्ति योजना के लिए एक अंतरराष्ट्रीय वित्त पोषण एजेंसी को शामिल करने की मंजूरी मांगी है। इस योजना का उद्देश्य नदी से पीने का पानी उठाकर जम्मू जिले के विभिन्न क्षेत्रों में आपूर्ति करना है ताकि शहर की बढ़ती पानी की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
भाषा खारी