अदालत ने आरोपी को अवैध रूप से हिरासत में रखने पर पुलिस आयुक्त से जांच रिपोर्ट मांगी
नोमान सुरेश
- 05 Aug 2025, 09:46 PM
- Updated: 09:46 PM
नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस आयुक्त को एक आरोपी की कथित अवैध हिरासत पर जांच रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है और कहा है कि बिना प्राथमिकी के किसी को हिरासत में रखना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
विशेष न्यायाधीश मनु गोयल खरब आरोपी कृष्णा की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे उत्तम नगर थाने के अधिकारियों ने गिरफ्तार किया था।
अदालत ने 29 जुलाई को जारी आदेश में कहा कि छह जुलाई की कथित घटना के संबंध में आठ जुलाई को प्राथमिकी दर्ज की गई। आरोपी और तीन अन्य लोग पिस्तौल तथा चाकू से लैस होकर कथित तौर पर एक घर में घुस गए और 80,000 रुपये और 10 ग्राम सोना लूट लिया।
अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारियों द्वारा दाखिल जवाब के अनुसार, एक आरोपी कृष्णा को आठ जुलाई को प्रारंभिक जांच के बाद जाने दिया गया था, लेकिन सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में दिख रहा है कि आरोपी को सात-आठ जुलाई की मध्य रात्रि में लगभग 12.50 बजे उसके घर से हिरासत में लिया जा रहा है।
न्यायाधीश ने कहा, “अदालत ने जांच अधिकारी (आईओ) और आतंकवाद निरोधक अधिकारी (एटीओ या निरीक्षक कानून एवं व्यवस्था) से सीधा प्रश्न पूछा था कि यदि उद्देश्य केवल प्रारंभिक जांच करना था तो याचिकाकर्ता (कृष्णा) को आधी रात को उसके घर से ले जाने की क्या जल्दी थी, जिसका वे कोई जवाब देने में विफल रहे।"
अदालत ने कहा कि जब दोनों पुलिस अधिकारियों को प्रासंगिक फुटेज पेश करने का आदेश दिया गया, जिससे पता चले कि प्रारंभिक पूछताछ के बाद कृष्णा को थाने से रिहा कर दिया गया था, तो वे चुप रहे।
इसमें कहा गया कि उनकी चुप्पी से आरोपी के वकील के इस कथन की पुष्टि होती है कि उनके मुवक्किल को सात-आठ जुलाई को उसके घर से हिरासत में लिया गया था और तीन दिन बाद 10 जुलाई को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था।
अदालत ने कहा, ‘‘स्पष्ट रूप से, कृष्णा को प्राथमिकी दर्ज होने से पहले ही उत्तम नगर थाने के पुलिस अधिकारियों द्वारा अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था, जो अनुचित कारावास और आवेदक को उसकी स्वतंत्रता से अवैध वंचित करने के समान है।’’
इसमें कहा गया है कि औपचारिक रूप से प्राथमिकी दर्ज किए बिना किसी को हिरासत में लेना ‘‘बिना किसी कानूनी औचित्य के है और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के संवैधानिक संरक्षण का उल्लंघन है।’’
अदालत ने निर्देश दिया कि आदेश की प्रति पुलिस आयुक्त के साथ साझा की जाए, ताकि वह कम से कम संयुक्त पुलिस आयुक्त रैंक के अधिकारी के माध्यम से मामले की जांच कर रिपोर्ट दाखिल कर सकें।
अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी।
भाषा नोमान