उप्र में विभिन्न दलों के नेताओं ने याद किए आपातकाल के कड़े अनुभव, बताये दमन के किस्से
अरूनव जफर अमित माधव
- 24 Jun 2025, 08:05 PM
- Updated: 08:05 PM
(अरूनव सिन्हा)
लखनऊ, 24 जून (भाषा) उत्तर प्रदेश में भाजपा के वरिष्ठ नेता हृदयनारायण दीक्षित, कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही तथा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माताप्रसाद पांडे एवं सपा के पूर्व मंत्री रविदास मेहरोत्रा जैसे नेता, भले ही राजनीति के मामले में पूरी तरह से अलग विचार रखते हो किंतु एक विषय पर इनके विचारों में सहमति है। यह विषय है, 1975 में देश में लगाया गया आपातकाल।
ये नेता 25 जून, 1975 से 21 महीने लंबे आपातकाल को लागू करने के लिए कांग्रेस की आलोचना करते हैं जो 21 मार्च, 1977 को समाप्त हुआ था ।
इस वर्ष 25 जून को आपातकाल लागू होने के 50 साल पूरे हो रहे हैं।
दीक्षित ने पीटीआईभाषा से कहा, "यह एक ऐसा समय है जब सभी राजनीतिक दल भयानक आपातकाल के लिए कांग्रेस पार्टी के खिलाफ एक स्वर में बोल रहे हैं। उस समय, सभी दलों और उनके नेताओं का एक ही संकल्प था - कांग्रेस को हटाना और आपातकाल को समाप्त करना। इसलिए आप यह जान लीजिए कि 25 जून एक ऐसा दिन होता है जब राजनीतिक विचारधाराएं हाशिए पर चली जाती हैं और सभी एकजुट होकर कांग्रेस की आलोचना करते हैं।"
दीक्षित ने सपा और कांग्रेस के बीच चल रहे गठबंधन का जिक्र करते हुए कहा, "वास्तव में, यही कारण है कि सपा के नेताओं सहित कई लोग आश्चर्य करते हैं कि उनकी पार्टी अब उसी कांग्रेस के साथ गठबंधन में कैसे हो सकती है जो आपातकाल के दिनों के लिए जिम्मेदार थी।"
आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए गए दीक्षित ने उन्नाव जेल में एक दिलचस्प किस्से को याद किया।
उन्होंने कहा, "मैंने एक ट्रांजिस्टर :रेडियो: का प्रबंध किया था और उस पर मैं 1977 के लोकसभा चुनावों के नतीजे सुन रहा था, जिसमें कांग्रेस को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था। जेलर ने मुझे ट्रांजिस्टर को ऊंची आवाज में सुनते हुए देखा और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर मैंने उनकी बात नहीं मानी तो मुझे दूसरी जेल में भेज दिया जाएगा। लेकिन दो घंटे के भीतर, जब यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस चुनाव हार गई है, तो यह जेलर अचानक विनम्र हो गया।"
दीक्षित ने याद करते हुए कहा, "मुझे 'अबे' कहकर संबोधित किए जाने से लेकर अब मुझे 'सर' कहकर संबोधित किया जाने लगा।"
उन्होंने कहा कि एक साल जेल में रहने के बाद जब वे घर आए तो उनके पिता भी उन्हें पहचान नहीं पाए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे नहीं पता कि यह कैसे हुआ, लेकिन कई अन्य लोगों के विपरीत, जेल में मेरा स्वास्थ्य बेहतर हो गया था।"
उप्र के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने आपातकाल के दिनों को याद करते हुए पीटीआईभाषा से कहा, "तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपातकाल लगाया था। मेरे पिता और चाचा जेल में बंद थे और उन पर मीसा लगाया गया था। मुझ पर भारतीय दंड संहिता :आईपीसी: की 22 अलग-अलग धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। वाराणसी में मेरे खिलाफ रेलवे पटरी उखाड़ने, बीएचयू के सामने दुकानें लूटने जैसे झूठे मामले दर्ज किए गए। इसी आधार पर मुझे विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया।"
उन्होंने कहा, "आपातकाल वास्तव में भारत के इतिहास में एक 'काला दिन' था।"
सिद्धार्थनगर के इटवा से वर्तमान सपा विधायक और उप्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा, "जब आपातकाल लगाया गया तो मैं घर पर नहीं था। मैं एक शादी समारोह में शामिल होने गया था, तभी मुझे पता चला कि मेरे घर पर पुलिस की छापेमारी हुई है। बाद में मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और बस्ती जिला जेल में बंद कर दिया गया। मैं यातनाओं से बच गया, लेकिन यह सच है कि कई लोगों को जेल के अंदर और बाहर दोनों जगह क्रूर व्यवहार का सामना करना पड़ा।"
उन्होंने कहा, "मेरे गांव में जबरन नसबंदी की जाती थी और लोग नसबंदी से बचने के लिए पेड़ों पर चढ़ जाते थे या घने गन्ने के खेतों में छिप जाते थे। यह सब काफी भयावह था।"
उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और वर्तमान में लखनऊ मध्य क्षेत्र से सपा के विधायक रविदास मेहरोत्रा ने कहा, "आपातकाल वास्तव में लोकतंत्र की हत्या के समान था। देश को जेल में बदल दिया गया था। मैं सिर्फ 18 साल का था जब मुझे लखनऊ जिला जेल में रखा गया और फिर बरेली केंद्रीय कारागार में स्थानांतरित कर दिया गया। उस समय लोकनायक जयप्रकाश जी के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति आंदोलन हुआ था।"
कांग्रेस के कई नेताओं ने भी पीटीआईभाषा को बताया कि वे आपातकाल लगाए जाने से खुश नहीं थे। उप्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आमिर हैदर ने पीटीआईभाषा से कहा, "कांग्रेस में शामिल होने से पहले मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में था। चूंकि मैं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से आया था और 1967 में कांग्रेस में शामिल हुआ था, इसलिए मुझे आपातकाल पसंद नहीं था। लेकिन, चूंकि मैं कांग्रेस में था, इसलिए मैंने इस पर सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दी। आपातकाल के दिनों में मुझे घुटन महसूस हुई।"
आपातकाल के दिनों को याद करते हुए उप्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष निर्मल खत्री ने पीटीआईभाषा से कहा, "आपातकाल के दौरान मैं उप्र के फैजाबाद जिले में युवा कांग्रेस का जिला अध्यक्ष था। मुझे लगा कि उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए यह उचित कदम था। इस दौरान ट्रेनें समय पर चलती थीं, कार्य कुशलता में सुधार होता था। मुझे लगता है कि इस दौरान सबसे ज्यादा परेशानी के लिए नौकरशाह जिम्मेदार थे।"
खत्री ने कहा, "हमारे नेता ने पौधरोपण और नसबंदी का नारा दिया था, लेकिन कुछ नौकरशाहों ने स्थानीय प्रभावशाली नेताओं के दबाव में जबरन नसबंदी शुरू कर दी, जिससे लोगों में दहशत और गुस्सा फैल गया, जो बाद के चुनावों में काफी स्पष्ट रूप से दिखाई दिया।"
उन्होंने कहा, "जबरन नसबंदी और लोगों पर नौकरशाही अत्याचार के कारण आपातकाल हटने के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस की हार हुई।"
भाषा अरूनव जफर अमित